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आरछन के नाम पर देश की जायदाद के खिलबाड़ कब तक।आरछण के नाम पर हिंसा कब तक आरछण पर ऐसी बिवस्था बन्नी चाहिए के आरछण सिर्फ हालात के मारे लोगो को मिले बाकी सबके पास से आरछण छिन लेना चाहिए।आज तक कोई बताये की आरछण से कोई जाती बिशेस् फलिफुली हो ना दलितों के हालात बदले न अल्पसंख्यको के न पिछडी जातियो की। आरछण की घुट्टी लेकर कौन अमीर बना कोन समृद्ध हुआ किसका जीवन सामान हाई कास्ट वालो की तरह ही पाया ज्यादातर किसी का नही।जो अमीर थे और अमीर हो गए जो गरीब थे और गरीब हो गए क्योंके जिनको स्कूल कालेजो व सरकारी योजनाओ में सर्बाधिक भागीदारी मिलनी चाहिए थे वह तो मुश्किल से इन सारी नीतिओ और योजनाओ का फ़ायदा उठा पाते सायद ही उन्हें ठीक से उनके हक़ की नौकरिया मिल पाती हो।नौकरिया जिन्हें मिलना चाहिए थी उन्हे आरछण के बाबजूद नौकरी या सरकारी सहायता न मिली। किस जाती ने सबसे ज्यादा तररकी की किया दलितों को दिया जाने वाला आरछण उनमे जीवन में कोई सुधार ला पाया नही।क्योंके आरछण एक लोलीपोप है जिसके लिए हर जाती संगर्ष करेगी ऐसे हालात में सबको आरछण देना एक बहोत कठिन कार्य होगा। इसलिए इसे जाती के नाम पे ना देकर सिर्फ गरीब लाचार परेशान हाल व बिकलांगो को दिया जाना चाहिय क्योंके वह इसके असली हक़दार है।उन्हें ही इसकी सबसे अधिक आवशकता है नाके जातियो के नाम पर इस बीमारी को बढ़ा कर नासूर बनाने की।आरछण नाम की वयवस्था में कुछ खामिया है जिन्हें जल्द सुलझाना होगा नही तो इससे भारत के गरीब व लाचार लोग फ़ायदा कम और सम्रद्ध लोग ज्यादा फ़ायदा उठायेगे।
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